Thursday, 22 October 2020

1442 जय माता कात्यायनी

 कात्यायन ऋषि की पुत्री,  कात्यायनी फिर नाम हुआ।

इस अवतार में माता ने फिर,  महिषासुर संघार किया।


 स्वर्ण समान चमकीली चार भुजाओं वाली माँ। 

दो हाथ में खड़ग, कमल, एक अभय मुद्रा में, एक हाथ वर देने वाली माँ। 


माता का गुण है खोज करना ,वैज्ञानिक युग की यह देवी है।

 आज्ञा चक्र में स्थित हो करो साधना , माँ मनचाहा फल देती है।


मां कात्यायनी के पूजन से विवाह में आती सब बाधा दूर हो जाती।

 साधक को इस लोक में रहते हुए अलौकिक तेज प्राप्ति हो जाती।


रोग शोक संताप भय से मनुष्य को मुक्ति दे देती है।

माँ है उदार ,अपने भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण कर देती है।


श्री कृष्ण और मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने इसी रूप की पूजा की।

गोपियों ने श्री कृष्ण को पति रूप में पाने को इसी रूप की पूजा की।

 

नवरातत्रे के छठे दिन पहन के कपड़े लाल, पीले रंग के फूल चढ़ाओ।

ध्यान करो और माँ को मधु का और मालपुओं का भोग लगाओ ।

करो उच्चारण

या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी  रूपेण संस्थिता।

 नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

9.42am 22 Oct 2020

2 comments:

  1. बहुत सुंदर और बहुत अद्भुत रचना जिसमे आपने मा कात्यायनी के पूजा और प्राप्त फल का सम्पूर्ण विवरण किया है। आप पर सचमुच में मा सरस्वती की कृपा है।

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  2. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद

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