Thursday, 1 September 2022

K2 2125 जागो ग्राहक जागो

 जागो ग्राहक जागो

जब आया सब्जी वाला घर पर ।

मोल भाव मां करने लगी ।

उसके बताए दाम को मां फिर, 

 कम कर कम कर करने लगी ।

इतने में तो नहीं चलेगा सब्जी वाला कहता ।

दाम सब्जी का यही लगेगा मां फिर कहती ।

मां का दाम सुन आगे बढ़ गया एक बार तो सब्जी वाला।

 पर फिर पीछे मुड़ आया मां के भाव में ही दे डाला ।

फिर से जब वह जाने लगा। चक्कर उसको आने लगा ।

मां ने बिठा लिया फिर उसको ।

आराम से पूछा जब निकले घर से काम पर ।

क्या निकले घर से खाकर  ।

बोला करियाना खरीद लूंगा पहले सब्जी बेच लूँ।

मां बोली बैठ अभी तुझे मैं कुछ खाने को दूँ ।

भर प्लेट ले आई वह खाना ।जान लिया उसने की मुश्किल है उसको देर तक मिलना दाना ।

मैं भी देख रही थी मां की यह सब कारगुजारी ।

एक तरफ माँ का मोल भाव दूसरी तरफ करना सेवादारी।

 जब सब्जी वाला चला गया ।

तो मुझसे भी फिर रहा ना गया ।

मैंने पूछा माँ से यह क्या है एक तरफ दाम के लिए आनाकानी ।

दूसरी तरफ उस पर इतनी मेहरबानी ।

तब मां ने सीख बताई।

व्यापार करो तो प्यार ना करो ।

प्यार करो तो व्यापार ना करो।

 सुनते ही सब समझ आ गया जैसे जीवन का  सार पा लिया

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