English 2973
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क़ाफ़िया इस
रदीफ़ होती है
सुकून मिलता मुझे कितना तू जब भी पास होती है।
मेरी हर शाम तू हो पास तो ही ख़ास होती है।
कभी तनहाई में जो बैठता हूंँ याद में तेरी ।
तेरी हर याद में मिलने की मुझको आस होती है।
तू मिलकर जब चली जाती है वादा करके मिलने का।
तू क्या जाने मेरी दुनिया तो तब वनवास होती है।
बदन ये सूख जाता इश्क की इस आग में जलकर।
पकड़ ले आग जाने कब ये सूखी घास होती है।
मुझे तुम ही बताओ ज़िंदगी कैसे गुज़ारें अब।
तेरे बिन ज़िंदगी इक पल की इक इक मास होती है।
मिलूंँ चाहे मैं कितनी बार, तुमसे 'गीत' मिल मिल के।
अधूरी सी मगर फिर भी तो दिल में प्यास होती है।
1222 1222 1222 1222
4.25pm 27 Dec 2024
Achi Ghazal hai
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