अधिकांँश आशंँकाएंँ होती हैं निर्मूल।
कुछ नहीं होता जिससे डरते हो कह कर भूत।
आनंद मग्न हो जा, सुख सुविधाओं में खो जा।
जो व्यर्थ ही चिंता करेगा तू,
सुख पायेगा यहांँ ये होगी तेरी भूल।
चिंता सिर्फ काल्पनिक डोरी है।
जिसने तुम्हारा चैन और नींद की चोरी है।
किससे तुम डरते हो,
कौन तुम्हें कष्ट पहुंँचा सकता है।
किस में है हिम्मत, जो कुछ कहे,
जो कहे, तू उससे टकरा सकता है।
क्योंकि, आदमी जो सोचता है,
उसी में लीन हो जाता है।
तब वही कुछ कर बैठता है,
तो सोचता है जो मैं सोचता हूंँ वह ठीक है।
इसलिए अच्छा ही सोच, चिंता को दे तू छोड़।
चिंता तुझे निरुत्साहित करेगी,
और तेरी तबाही का कारण बनेगी।
व्यर्थ की अनहोनी कल्पनाओं से खुद को निकाल।
बना अपनी ज़िंदगी को शांँत और खुशहाल।
7.20pm 24 July 1990
Better please write in English verse.
ReplyDeleteBetter please write in English verse.
ReplyDeleteउम्दा कविता है
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