कुछ ठीक नहीं कर सकते तो फिर बिगाड़ते क्यों हो।
जो लगा नहीं सकते कुछ ,तो फिर उखाड़ते क्यों हो।
प्यार की भाषा क्या बहुत है मुश्किल, क्रोध करना आसान है?
प्यार करने का धैर्य रखो, इस तरह किसी को लताड़ते क्यों हो
बनना और बिगड़ना तो, यूँ भी नियम है इस दुनिया का।
जिसे तुम चाहते थे, वह बिखर गया तो, यूँ निहारते क्यों हो।
कोशिश तो अपनी कर देखो किसी को बचाने की।
हिम्मत नहीं है जो बचाने की, तो उनको उजाड़ते क्यों हो।
3.35pm 06 Sept 2020
अति सुन्दर अभिव्यक्ति। अनुपमा पाराशर
ReplyDeleteअच्छी रचना है उत्तम सन्देश के साथ।
ReplyDeleteपोसिटिव सोच को दर्शाती है।