Wednesday, 20 January 2021

1532 Dohe दोहे

 कोरोना के  काल में ,निकलें  बाहर लोग।

कितना ही समझा चुके,समझें ना यह रोग।


जहाँ कहीं भी जाइए ,मचा हुआ है शोर।

कलयुग के इस दौर में ,चले न कोई जोर।


संस्कार जिनमें भरे, मिले लोग हैं चंद।

संस्कारी होने का ,अलग होय आनंद।


सर्दी के इस मौसम में ,ऐसी चले बयार।

थरथर काँपे लोग हैं,मचि है हाहाकार।

3.46pm 20 Jan 2021

7 comments:

  1. बहुत खूब संगीता जी

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  2. बहुत खूब संगीता जी

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  3. बहुत खूब संगीता जी

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  4. बहुत खूब संगीता जी

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  5. बहुत उत्तम और हकीकत भी।
    आप दोहे भी लिख लेती हैं।
    धन्य हो।

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