कोई नहीं जानता प्रकृति के रंग ।
कब बदल लेती है ये अपने ढंग।
जब दिखाती है ये अपने रंग।
कोई नहीं कर सकता इससे जंग।
मनुष्य सोचता है, मुझ में बड़ी है ताकत ,
पर कर नहीं सकता प्रकृति से बगावत।
चुपचाप सहती रहती है यह धरती ,पर ,
जब उखड़े,कोई रोक सके ,नहीं किसी में ताकत।
मनुष्य नहीं संभलता, उल्टे सीधे ख्वाब बुनने से।
सोच लेता है रोक लेगा प्रकृति पर बाँध बुनने से।
मानव ,तुझ में नहीं ताकत, तू रोक सके प्रकृति के रंग।
प्रकृति रंग दिखाएगी ही,जो बदले नहीं तूने अपने ढंग।
2.55pm 2.56pm 7 Feb 2021
आप किसी भी सब्जेक्ट पर कविता लिख लेती है।मई समझता हूँ कि इसके लिए पहले शोध कार्य करना पड़ता है तब आप उसे लयबद्ध और कर्म से सजाती है , सुव्यवस्थित करतीं हैं। आप सचमुच में बहुत मेहनती महिला हैं ।धैर्य रखिये इसका फल जो बहुत बड़ा होगा , समय आने पर अवश्य मिलेगा।
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद
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