झील किनारे बैठे यूँ ही,
आहट झरने की सुनते ज्युँ ही,
यादों में तेरी मैं जब खोया।
मन के भीतर जो लहरें उठीं,
सोच में पड़ गया त्यूँ ही,
क्या पाया मैंने क्या खोया।
क्यों सोचता है मन इतना,
पूछना क्या है इसमें इतना,
पाया वही है, जो है बोया।
8.30am 17 Feb 2021Wednesday
Very nice
ReplyDeleteThanks ji
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