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2122 1122 1122 22(112)
क़ाफ़िया आबी
रदीफ़ आंँखें
रोज़ ही मुझको जगाती हैं गुलाबी आंँखें।
होश सारे लिए जाती हैं शराबी आंँखें।
चुप सी लग जाती है दिल हाल बयान कैसे करे।
सामने आती हैं जब मेरे नवाबी आंँखें।
सब लिखा हाल तेरे दिल का तेरे चेहरे पर।
हाल पढ़ने नहीं देती ये किताबी आंँखें।
कह दिया हाल है दिल का जो छुपा रख्खा था ।
हाल क्या होगा जो बोलेंगी जवाबी आंँखें।
यूँ तो सब सोच के बोला है उसे हाल ए दिल।
सोचना अब जो है सोचें वो हिसाबी आंँखें।
देख के इनको कभी जीता, कभी मरता हूँ।
जीने मुझको नहीं देती ये हिजाबी आँखें।
वह नज़र फैंके हैं ऐसे, करें घायल सब को।
तूने देखी कभी करती यूँ खराबी आंँखें।
मैं तो मर ही यहांँ जाता सह के दुनिया के सितम।
'गीत' को जीना सिखाती है रुआबी आंँखें।
8.53am 21 March 2025
Very nice ji
ReplyDeleteBahut shandar. Radeef achi nibhai hai
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