2122 2122 2122 212
क़ाफ़िया ए
रदीफ़ सोचो तुम
सबको ऊपर वाला देता है सहारे सोचो तुम।
पार होगी हर डगर पर इसको पहले सोचो तुम।
जानता हूंँ कुछ नहीं मुझको तो होने देगा तू।
उसका कोई क्या बिगाड़े जिसके बारे सोचो तुम।
जिंदगी मिलती है इक बारी इसे जी कर गुजार।
काट ली तूने बहुत अब जीना कैसे सोचो तुम।
हाथ ऊपर वाले का जिस पर सदा रहता रखा।
वह भला कैसे कोई बाज़ी को हारे सोचो तुम।
खुश रहोगे गर तभी होगी भी खुशियों की बहार।
होता वो ही जिंदगी में जो भी जैसे सोचो तुम।
सोच जब तूने लिया पानी हैं अपनी मंजिलें।
राह जो पकड़ी है कैसे चलना उसपे सोचो तुम।
सोचना सबसे है पहले, क्या है करना पाने को।
पार मुश्किल राह भी करने पड़ेंगे सोचो तुम।
'गीत' ने यूंँ ही नहीं पाई हैं अपनी मंज़िलें।
इसको पाने को हैं पापड़ कितने बेले सोचो तुम।
6.12pm 12 May 2025
No comments:
Post a Comment