Friday, 27 June 2025

3152 ग़ज़ल आराम मुझे दे दो


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क़ाफ़िया आम

रदीफ़ मुझे दे दो

क्या खूब ये आंखें हैं इक जाम मुझे दे दो। 

मैं आस लिए बैठा, पैगाम मुझे दे दो।


जब से हैं लड़ी आंखें, बढ़ने लगी बेताबी

कुछ पल ही सही अब तो आराम मुझे दे दो।


जीवन किया अपना अब, ये नाम तेरे सारा।

लग साथ तेरे जाए, वो नाम मुझे दे दो।


तरसाओगे कितना इस, मासूम से दिल को तुम।

चाहूंँ जो बिताना इक, वो शाम मुझे देदो।


जब साथ चले दोनों महके ये समा सारा

खुशबू से तेरी महके, गुलफाम मुझे दे दो।


उंगली न उठे तुम पर और पाक रहे दामन।

तुम पर न लगे कोई,, इल्जाम मुझे दे दो।


कब तक मैं रहूं तन्हा, बाहों में मेरी आओ।

ये इश्क मेरा तड़पे, अंजाम मुझे दे दो।

उसके

मिल जाए मोहब्बत जो इक बार मुझे तेरी।

फिर जिंदगी चाहे ये गुमनाम मुझे दे दो।

 

इससे कि यहां पहले अब इंंतहा हो जाए

कुछ 'गीत' मोहब्बत का इनाम मुझे दे दो दाम

3.25pm 27 ajune 2025

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