2122 2122 2122 212
क़ाफ़िया आ
रदीफ़ रातभर
बेवजह तूने था मुझको, क्यों सताया रात भर।
और रहा था चांँद भी धीरे से चलता रात भर।
काटनी मुश्किल बहुत थी इक तरफ़ तो रात ये।
उस पे वादा करके मुझको, तू न आया रात भर।
जब यह जाना काटना है सारा जीवन तेरे बिन।
जाग कर क़िस्से मैं खुदको था सुनाता रात भर।
रात हो रंगीन जाती, चांँदनी चुभती नहीं।
आके मेरे पास जो तू बैठ जाता रात भर।
मैं अकेला ही रहा था इस सफ़र में अब तलक।
काश होता संग तू और साथ चलता रात भर।
पूछता मुझको तू क्या है, शब गुज़ारी किस तरह।
जाग कर तारे गिने और चांँद देखा रात भर।
जान पाया था न कोई, ग़म का मेरे कुछ सबब।
खुद कहाँ मैं जान पाया जबकि सोचा रात भर।
'गीत' दुनिया तो न समझेगी तेरे इस हाल को।
जागता यह सोच कर तू क्यों है रहता रात भर।
12.32pm24 April 2025
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