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Tuesday, 6 May 2025

3102 गाना चलो याद करते हैं बचपन की बातें


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चलो याद करते हैं बचपन की बातें। 

वो दिन हल्के फुल्के वो खुशियों की रातें।

बड़ी मौज थी जब कोई फिक्र ना थी। 

दिया करते पत्ते व पत्थर सुगातें।


खजाना हमारा मुलायम से पत्थर। 

सड़क पर सटापू था बस खेल अपना। 

बड़ी भागा दौड़ी थी तब भी सफर में। 

पकड़ना जो पड़ता था उस खेल में जब।

हंसी के फव्वारे कभी रुक न पाते।

वह दिन भी निकलते थे हंँसते हँसाते।

कहांँ से मैं लाऊँ फिर से वो रातें ।

चलो याद करते हैं बचपन की बातें। 

वो दिन हल्के फुल्के वो खुशियों की रातें।


बनाया क्यों बचपन को इतना है छोटा।

 पता ही लगा ना कहांँ कब यह छूटा।

लगा पंख जाने कहांँ वो गया उड़। 

समां ही लगा कब उसे देखते मुड़।

कमाई कमाने में ऐसे हैं उलझे। 

यह दिन ज़िंदगी के अभी तक ना सुलझे

यही यार खुद से मैं करता हूंँ बातें।

चलो याद करते हैं बचपन की बातें। 

वो दिन हल्के फुल्के वो खुशियों की रातें।



है अब भी लगी दौड़ जीवन में अपने। 

मगर भागने में खुशी अब नहीं है। 

कहूँ खुद को रुक जा किसी मोड़ पर अब। 

मगर मोड़ ऐसा तो आता नहीं है। 

मिले यार कोई जो समझाए मुझको। 

हैं सब दूर कोई भी मिलता नहीं है। 

यही रात दिन खुद से करता हूंँ बातें

चलो याद करते हैं बचपन की बातें। 

वो दिन हल्के फुल्के वो खुशियों की रातें।


मेरे यार ने जो सजाई है महफ़िल। 

वो दिन लौट आए हैं फिर जिंदगी में।

दुआएं मेरे दिल से रुकती नहीं है। 

यही दिल ये चाहे समां थम ही जाए।

हों अब जिंदगी में उजाले उजाले।

के बचपन सी अब जिंदगी मुस्कुराए।

वही गीत दिन हों  वही सारी शामें।

चलो याद करते हैं बचपन की बातें। 

वो दिन हल्के फुल्के वो खुशियों की रातें।

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10.10am 6 May 2025

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