जागो ग्राहक जागो
जब आया सब्जी वाला घर पर ।
मोल भाव मां करने लगी ।
उसके बताए दाम को मां फिर,
कम कर कम कर करने लगी ।
इतने में तो नहीं चलेगा सब्जी वाला कहता ।
दाम सब्जी का यही लगेगा मां फिर कहती ।
मां का दाम सुन आगे बढ़ गया एक बार तो सब्जी वाला।
पर फिर पीछे मुड़ आया मां के भाव में ही दे डाला ।
फिर से जब वह जाने लगा। चक्कर उसको आने लगा ।
मां ने बिठा लिया फिर उसको ।
आराम से पूछा जब निकले घर से काम पर ।
क्या निकले घर से खाकर ।
बोला करियाना खरीद लूंगा पहले सब्जी बेच लूँ।
मां बोली बैठ अभी तुझे मैं कुछ खाने को दूँ ।
भर प्लेट ले आई वह खाना ।जान लिया उसने की मुश्किल है उसको देर तक मिलना दाना ।
मैं भी देख रही थी मां की यह सब कारगुजारी ।
एक तरफ माँ का मोल भाव दूसरी तरफ करना सेवादारी।
जब सब्जी वाला चला गया ।
तो मुझसे भी फिर रहा ना गया ।
मैंने पूछा माँ से यह क्या है एक तरफ दाम के लिए आनाकानी ।
दूसरी तरफ उस पर इतनी मेहरबानी ।
तब मां ने सीख बताई।
व्यापार करो तो प्यार ना करो ।
प्यार करो तो व्यापार ना करो।
सुनते ही सब समझ आ गया जैसे जीवन का सार पा लिया
6 comments:
Very nice ji
बहुत सार्थक।
बहुत सुंदर पंक्तियाँ हैं।
धन्यवाद जी
धन्यवाद जी
Thanks ji
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