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Thursday, 28 January 2021

1540 सफर थम गया

 मैं चला था मंजिल की तरफ।

 मगर ठहरी रही मेरी यह डगर।

रास्ते सब यहाँ खामोश थे ।

शजर भी तो सब बेहोश थे। 

अपनी तन्हाई में था मैं गुम। 

कर रहा था अपनी ही अधेड़ बुन। 

इकदम कहाँ से ये शोर आ गया ।

खामोशी का आलम शोर में बदल गया ।।

अब लग रहा है नयी है यह जगह ।

गुम गया मेरा जो था रास्ता ।

अब सोचता हूं मैं जाऊं ठहर।

 देखूंगा मैं आगे ,जब होगी सहर 

2.26pm 28 Jan 2021

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