मैं चला था मंजिल की तरफ।
मगर ठहरी रही मेरी यह डगर।
रास्ते सब यहाँ खामोश थे ।
शजर भी तो सब बेहोश थे।
अपनी तन्हाई में था मैं गुम।
कर रहा था अपनी ही अधेड़ बुन।
इकदम कहाँ से ये शोर आ गया ।
खामोशी का आलम शोर में बदल गया ।।
अब लग रहा है नयी है यह जगह ।
गुम गया मेरा जो था रास्ता ।
अब सोचता हूं मैं जाऊं ठहर।
देखूंगा मैं आगे ,जब होगी सहर
2.26pm 28 Jan 2021
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