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Friday, 1 October 2021

G1 1786 ग़ज़ल Ghazal लाली गालों की गहरा गई थी ।

 Qafia Aa काफिया आ

 रदीफ गई थी Radeef  Gai thi

212 212 212 2

जब मुझे देखा शरमा गई थी ।

लाली गालों की गहरा गई थी ।


गेसुओं को जो लहराया उसने ।

दिल पे मेरे सितम ढा गई थी ।


छोड़कर जब गई थी वो मुझको

तब जुदाई वो तड़पा गई थी ।


आईना रख जो देखा था खुद को।

अपनी सूरत उसे भा गई थी।


आई थी जब वो महफ़िल में मेरी।

आते ही फिर वो तो छा गई थी ।


प्यार का राग  छेड़ा जो उसने ।

फिर तो खामोशी गहरा गई थी ।


क्या हसीं रब ने उसको बनाया  ।

 देख धोखा वो खुद खा गई थी।

9.20am 1Oct 2021

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