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Friday, 27 June 2025

A+ 3154 ग़ज़ल आराम मुझे दे दो

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क़ाफ़िया आम

रदीफ़ मुझे दे दो

क्या ख़ूब ये आंँखें हैं, इक जाम मुझे दे दो। 

मैं आस लिए बैठा, पैग़ाम मुझे दे दो।


जब से हैं लड़ी आंँखें, बढ़ने लगी बेताबी।

कुछ पल ही सही अब तो, आराम मुझे दे दो।


जीवन किया अपना अब, ये नाम तेरे सारा।

लग साथ तेरे जाए, वो नाम मुझे दे दो।


तरसाओगे कितना इस, मासूम से दिल को तुम।

चाहूंँ जो बिताना इक, वो शाम मुझे दे दो।


जब साथ चलें दोनों, चहके ये जहां सारा।

ख़ुशबू से तेरी महके, गुलफ़ाम मुझे दे दो।


उंँगली न उठे तुम पर, और साफ़ रहे दामन।

तुम पर न लगे कोई, इल्ज़ाम मुझे दे दो।


कब तक मैं रहूंँ तन्हा, बाहों में मेरी आओ।

ये इश्क़ मेरा तड़पे, अंजाम मुझे दे दो।


मिल जाए मोहब्बत जो, इक बार मुझे तेरी।

फिर ज़िंदगी चाहे ये, गुमनाम मुझे दे दो।

 

इससे कि यहांँ पहले, अब इंंतहा हो जाए।

कुछ 'गीत' मोहब्बत का ईनाम मुझे दे दो। 

3.25pm 27 June 2025

2 comments:

विलक्षण said...

प्यारी ग़ज़ल 👍

विलक्षण said...

वाह वाह