जब भी दिल के भीतर गहराई में जाती हूँ।
न रोता न हंँसता, बस चुप ही उसे पाती हूँ।
देखती हूँ जब उसे खोए हुए किसी के बारे में।
कौन है वह यह जान नहीं मैं पाती हूँ।
सोचना ही उसका अब शौक बन गया है।
सोचता है उसी के बारे जहांँ उसे ले जाती हूँ।
कोशिश करती हूँ उससे जुड़ने की।
नहीं देखता वो, मैं पास खड़ी रह जाती हूँ।
डूब जाता है वह इतना गहरा।
पास खड़ा हो, तब भी नींद मुझे आ जाती है।
ऊब जाती हूंँ जब पास खड़ा वह होता है।
फिर भी जाने क्यों उसी के बारे में सोचती रहती हूँ।
कभी मेरी आँखों से आँसू बहने लगते हैं तो।
दिल उसको क्यों दिया यह सोचकर पछताती हूँ।
दे दूंँ फिर एक बार किसी और को यह दिल।
जो सिर्फ मेरा हो, बस सोच कर हीक रह जाती हूँ।
6.56pm 3 Oct 2025
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