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Thursday, 24 November 2016

K2 0076 मौत को आवाज़(Maut ko aawaj)

ऐ मौत तुझे पुकारता हूं ,सुनसान अंधेरों में ।
कहां जा छुपी है डर कर बसेरों में ।
जोश ए खून मेरा खौ़ल रहा है ।
क्या तेरा दिल इस पर डोल रहा है ।
मैं तुझे पुकारता हूं तू दूर जाती है ।
तू मुझसे डरती है, या शर्माती है ।
जब जीने की तमन्ना करता था ,
तो राह राह पर मौत ने दामन फैलाया ।
अब बुलाता हूं ,तो तूने किस तरह अपना दामन बचाया ।
जीना जो चाहा तो तेरा रुख रहा हमारी तरफ ।
अब बुलाता हूं तो जाने कहां को है तुम्हारा रुख।
 जमाना बदला उसके साथ तुम भी बदल गए ,
हालात जो बदले मेरी जिंदगी के तो तेरे रास्ते भी बदल गए।
 हर तरफ आवाज देकर देख ली तुझे
 सुनसान राहों में कहां नहीं खोजा ।
जाने कहां बसेरा डाला है तूने आज कल ।
किसने तुझको है कहां रोका ।
जो दिल भर गया हो उससे ,
तो तुम्हें बुलाता हूं ।
गुजरना इधर से,
मैं तेरा राहे कदम बनना चाहता हूं ।
अब तो तेरे ही साथ चलना चाहता हूं।
25Aug 1989. 76

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