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Friday, 25 November 2016

K2 0086 तोड़ दिया दिल का शीशा (tod diya dil ka sheesha)

ठेस लगी है मेरे दिल को ,
जो तुमने इस तरह दामन छुड़ाया है।
दिल का दीया जो जल रहा था शान से,
तूने किस तरह बुझाया  है ।
यह आँसू जो बह रहे हैं,
मोती बन गए, इन्हें समेटना चाहता हूंँ ।
जो ज़ख्म तूने मुझे दिए हैं ,
उन्हें हरा ही रखना चाहता हूंँ।
ताकि जिंदगी कट जाए इन्हीं यादों में,
मुझे अब कुछ लेना नहीं तेरी फ़रियादों से ।
राह में अब कहीं मिल भी गए अगर  ,
देखेंगे न तुम्हें मगर छलक जाएगी नज़र ।
चाहता हूंँ तुम पकड़ो वो डगर ,
जिसका रास्ता आता न हो इधर ।
मैं थामे रखूँगा टुकडे जिगर के ,
बस तुमसे यही गुजारिश है ,
तुम गुजरना न इधर से।
86.  4 Sept 1989

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