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Monday, 21 November 2016

K009 रात दिन खोए प्यालो में (Raat din khoye pyaali )

रात दिन खोए प्यालो में
जाम पीते हैं हम ख़यालों में।

1. यादें वफा की ,
जिंदगी बन गई है ,
 अब हमारे लिए यह बंदगी ,
सोचता हूं कि क्यों तुमसे यूं मैंने प्यार किया था
और तुमने भी पल भर के लिए
दिल मुझ पर निसार किया था ।
इसी याद में ,
रात दिन खोए प्यालो में ,
जाम पीते हैं हम ख़यालों में ।

2.आंखों में आंखें डालकर बैठे थे हम कहीं ,
प्यार की दास्तां शुरू हुई थी वही।
न जाने क्यों फिर वह दिन लौटते नहीं ।
इसी सोच में ,
रात दिन खोए प्यालो में,
जाम पीते हैं हम ख़यालों में ।

3.अब तो जिंदगी के लगता है ये आखिरी लम्हे हैं।
 हम तो बैठे इसी गम में हैं ,
कब मिलेगी वह खुशबू जो तुम्हारे तन में है।
वह मिलती नहीं किसी कोने में ।
रहते हैं उसी खोज में,
रात दिन हुए प्यालो में ,
जाम पीते हैं हम ख़यालों में।
09 1986

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