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Wednesday, 3 December 2025

Aa+;3312 ग़ज़ल हमारी ग़ज़ल


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क़ाफ़िया अब

रदीफ़ हमारी ग़ज़ल में है

हर दिल का हर हिसाब हमारी ग़ज़ल में है।

पूरी ही इक किताब हमारी ग़ज़ल में है।


मेरी ग़ज़ल है हीर का सोहणी का बांकपन।

जेहलम भी और चिनाब हमारी ग़ज़ल में है।


देखा था मिलके साथ जो दोनों ने एक ही।

अपना हसीन ख़्वाब हमारी ग़ज़ल में है।


जो कर सका ब्यां न था मैं बोलकर कभी।

माशूक का शबाब हमारी ग़ज़ल में है।


सिहरन जो उठ रही है तेरे पास बैठकर।

एहसास का गुलाब हमारी ग़ज़ल में है। 


किसने दिया है प्यार, दिए किसने ग़म हमें।

हर शख़्स का हिसाब हमारी ग़ज़ल में है।


बरसात तब हुई थी जुदा तुमसे जब हुए।

ज़ख्मी दिलों का आब हमारी ग़ज़ल में है। 


गर जानना जो चाहो, पढ़ो 'गीत' गौर से।

हर बात का जवाब हमारी ग़ज़ल में है। 

5.17pm 3 Dec 2025

Milti hai zindagi mein Mohabbat kabhi kabhi 

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