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Thursday, 10 July 2025

3167 ग़ज़ल जिंदगी क्यों कर फिसलती जा रही है


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क़ाफ़िया करती

रदीफ़ जा रही है

जानता हूँ ज़िंदगी पल-पल निकलती जा रही है।

सोचता हूंँ जिंदगी क्यों कर फिसलती जा रही है।

जब कभी तुमने दिया ही साथ ना अपने बदन का। 

अब जवानी में उम्र कहते हो ढलती जा रही है। 

सामने आया नतीजा अब है मेहनत का,तभी तो।

हर कदम पर कामयाबी खुद ही मिलती जा रही है।

क्यों नहीं हैं देख पाए लोग, मेहनत कितनी पीछे।

लोगो को क्यों कामयाबी मेरी खलती जा रही है।

आजकल रहता कहांँ खोया बताए कोई मुझको।

उससे होती क्यों कहो गलती पे गलती जा रही है 

हाथ उसका है सदा सर पर तभी तो जिंदगी ये।

किस मज़े से 'गीत' आगे आगे चलती जा रही है।

6.46pm 10 July 202 

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