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Friday, 12 December 2025

3321 ग़ज़ल सरकार के पीछे


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क़ाफ़िया आर

रदीफ़ के पीछे 

नहीं मैं जान पाया क्या वजह थी प्यार के पीछे।

रही और क्या वजह मुझपे तेरे इस वार के पीछे।


बदल जाता है पल में तू, करुँ विश्वास कैसे मैं।

 तू क्या है चाहता ,चाहत है क्या दरकार के पीछे।



नहीं इंसान तू आसानी से जो मान जाएगा।

कहीं ये चाल कोई तो नहीं‌ इक़रार के पीछे।


कोई गलती नहीं की उसने फिर भी कैसे हारा वो।

पता जाकर लगाओ कौन है इस हार के पीछे।


(पढ़ी हैं तुमने वो खबरें तुम्हारे सामने हैं जो।

ज़रा उनको भी तो पढ़ लो, जो हैं अखबार के पीछे।)


ब्यां हम हुस्न उसका क्या करें लोगो, जरा देखो।

लगी कितनी कतारें हैं मेरी सरकार के पीछे।


नहीं तुम जानते कैसी तड़प होती है सीने में। 

चला आया यहांँ मैं दौड़ता दीदार के पीछे।

 

कहांँ तक भागेगा रुक जा, जरा पीछे भी मुड़ कर देख।

 बहुत तू थक गया अब भागकर संसार के पीछे।


पड़ा पीछे जमाना यह खुशी है ढूंढता हरसू।

है कितने दुख जमाने के, इस एक झंकार के पीछे।


(तुम्हें क्या देखकर लगता नहीं है उसके चेहरे को।

कि कितने दुख जमाने के हैं इस झंकार के पीछे।)


करें हम क्यों न इक दूजे से जी भर प्यार ऐ लोगो।

रखा है 'गीत' क्या दुनिया में इस तकरार के पीछे। 

22.32pm 11 Dec 2025

2 comments:

Anonymous said...

बहुत खूब 👏💐 शानदार ग़ज़ल कही है आपने

Anonymous said...

बहुत खूब