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Monday, 18 February 2019

832 वक्त है संभल जाओ (Waqt Hai Sambhal jao)

जब देश एक और सविधान एक।
फिर सब पर लागू अलग-अलग विधान क्यों।
एक कमाए, दूसरा बैठकर खाए।
 ऐसा है देश का प्रावधान क्यों।

गरीब को उठाने की बात नहीं।
 बस दे दो उसको आज की रोटी।
ऐसी सोच से कब होगा विकास।
 हो देश अपना भी विकसित, करते नहीं ऐसा काम क्यों।

दूर करो रुकावटों को जो उन्नति में बाधक हैं।
वोटों की राजनीति ना खेलें,
जो देश के संचालक हैं।
नहीं करते यह अपने देश की उन्नति की बात क्यों।

पार्टी बाजी पर रहता है सबका ध्यान।
 कभी सोचा नहीं देश का करें कल्याण।
जो होता मन तब देश की सेवा करना,
तो होता, देश का ऐसा हाल क्यों।

 नेता नाम लिया, पर क्या नेता जैसा काम किया।
अपना ही बस पेट भरा ,जब भी शासन किया।
जैसा नेता वैसी प्रजा।
कभी दिया नहीं, इस बात पर ध्यान क्यों।

 नेता तो सब तजकर लोकहित में रहते हैं।
पर यहाँ के नेता अपने हित की ही बातें कहते हैं
 जब नेता  की ही होगी सोच ऐसी,
 तो बताओ देश बढ़ेगा आगे क्यों।

अभी वक्त है संभल जाओ।
 खुद को देश की सेवा में लगाओ।
 जब होगा देश का भला,
तो तुम्हारा कैसे ना होगा भला, भला क्यों।
2.21pm 18Feb 2019 Monday

Jab desh Ek aur sanvidhan ek.
Fir Sab Par Lagoo  alag alag Vidhan kyun.
Ek kamaye Doosra baith ke Khaye,
Aisa Hai Desh Ka Pravdhan kyun.

Garib ko Uthane ki baat nahi.
Bus dedo UsKo Aaj Ki Roti
Aeisi Soch se kab Hoga Vikas,
Ho Desh Apna Bhi viksit, Karte Nahi Aisa kaam kyun.

Dur karo Rukaavton Ko, Jo Unnati me badhak hain.
Voton ki Rajneeti na Khelen,
Jo Desh ke sanchalak hai.
 Nahi karte Yai apne desh ki Unnati Ki Baat kyun.

Party Baji pe Rehta Hai Sab Ka Dhyan.
Kabhi Socha Nahi Desh Ka Karen Kalyan.
Jo Hota Mantav  Desh Ki Seva karna.
Tu Hota Desh Ka Aisa Haal kyun.

Neta Naam Liya ,par kya Neta Jaisa Kaam Kiya.
Apna hi bas pait Bhara,Jab Bhi shashan Kiya.
Jeisa Neta Vessi Praja.
 Kabhi Diya nahi is Baat par Dhyan kyun.

Neta to sub taz Kar Aok hit Mein Rehte Hain.
Par Yahan ke neta Apne hit Ki Hai Baatein Karte Hain.
Jab Neta ki hi Hogi  Soch Aisi.
To Batao Desh Padega Aage Kyun.

Abhi Waqt Hai Sambhal jao.
 Khud Ko Desh Ki Seva Mein lagao.
Jab Hoga Desh Ka Bhala,
Toh Tumhara Kaise Na Hoga Bhala, Bhala Kyun.

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