English version 3093
क़ाफ़िया नी
रदीफ़ चाहिए
चुप नहीं अब बैठना, ललकार होनी चाहिए।
वो जगह दुश्मन के खून से साफ़ करनी चाहिए।
हम अमन के हैं सिपाही कम न समझें हमको वो।
खौफ की अब इक कहानी हमको लिखनी चाहिए।
कल निहत्थों का लहू जो है बहा कश्मीर में।
उनकी भी ऐसे जमीन अब लाल दिखनी चाहिए।
खून में लिपटी है वादी रंग देखो क्या हुआ।
इसकी सुंदर इक कहानी फिर से बननी चाहिए
खौफ का साया है छाया, चुप सी हर पासे लगी।
कैसे सन्नाटा यह उतरे बात करनी चाहिए
कब तलक बैठेंगे बनके भीरू हम अपने ही घर।
ऐसे में आवाज हमको तो उठानी चाहिए।
वो भी देखें अब तमाशा डर के अब जीना नहीं।
कर खड़ा सड़कों पे गोली मार देनी चाहिए।
'गीत' का जोश ए लहू ललकारता है उनको अब।
बात का निकला समां तलवार चलनी चाहिए।
5.58pm 25 April 2025

1 comment:
Bakamaal likha hai ...👏👏👏👏
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