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Monday, 21 April 2025

A+ 3087 ग़ज़ल मेरी हालत को

Ana Dehlvi 


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क़ाफ़िया आ

रदीफ़ था मेरी हालत को

मिली जब तुन न जाने क्या हुआ था मेरी हालत को।

अजब सा इक कोई झ‌टका, लगा था मेरी हालत को।

मैं खोया था कई सदियों से अपनी ही किसी धुन में। 

ग़ज़ल और गीत लिख बहला रहा था मेरी हालत को।

तेरी आवाज मीठी सी गजल में रंग भरती है।

तराना गा बदल तुमने दिया था मेरी हालत को।

बदल जब वो गया था टूट में भी तो गया था तब।

बिगाड़ा, ठीक भी उसने किया था मेरी हालत को।

मैं खुद को भूल बैठा जब मेरे वह सामने आई।

बड़े ही भाव से उसने छुआ था मेरी हालत को।

कहा तुमसे जो मैंने था, बड़ा मायूस मैं था तब।

तू आकर देख, जब मैंने कहा था मेरी हालत को।

यहाँ पर कौन किसका है, सफ़र में सब अकेले हैं।

यही कह ठीक फिर में रख सका था मेरी हालत को।

रही अब 'गीत' है कितनी, उम्र थोड़ी ही बाकी है। 

यही फिर सोच कर बहला लिया था मेरी हालत को।

9..04pm 21 April 2025

1 comment:

Anonymous said...

बेहतरीन ग़ज़ल!👌👌👌👍👍