Ana Dehlvi
1222 1222 1222 1222
क़ाफ़िया आ
रदीफ़ था मेरी हालत को
मिली जब तुम न जाने क्या हुआ था मेरी हालत को।
अजब सा इक कोई झटका, लगा था मेरी हालत को।
मैं खोया था कई सदियों से अपनी ही किसी धुन में।
ग़ज़ल और गीत लिख बहला रहा था मेरी हालत को।
तेरी आवाज मीठी सी ग़ज़ल में रंग भरती है।
तराना गा बदल तुमने दिया था मेरी हालत को।
बदल जब वो गया था टूट में भी तो गया था तब।
बिगाड़ा, ठीक भी उसने किया था मेरी हालत को।
मैं ख़ुद को भूल बैठा जब मेरे वो सामने आई।
बड़े ही भाव से उसने छुआ था मेरी हालत को।
कहा तुमसे जो मैंने था, बड़ा मायूस मैं था तब।
तू आकर देख, जब मैंने कहा था मेरी हालत को।
यहाँ पर कौन किसका है, सफ़र में सब अकेले हैं।
यही कह ठीक फिर में रख सका था मेरी हालत को।
रही अब 'गीत' है कितनी, उम्र थोड़ी ही बाक़ी है।
यही फिर सोच कर बहला लिया था मेरी हालत को।
9..04pm 21 April 2025
1 comment:
बेहतरीन ग़ज़ल!👌👌👌👍👍
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