क़ाफ़िया आ
रदीफ़ है इन दिनों
क्या बताऊंँ हाल कैसा चल रहा है इन दिनों।
बस खुदा का ही तो मुझको आसरा है इन दिनों।
तोहमतें देती है दुनिया आके मुझको देख ले।
बदला दुनिया का नजरिया तोड़ता है इन दोनों।
रोज़ ही चाहत बदल जाती है उसकी प्यार में।
कैसे जानू क्या वो मुझसे चाहता है इन दिनों।
हम करें विश्वास उसकी बात पर कैसे कहो।
करता कुछ पर और कुछ वो बोलता है इन दिनों।
चांँदनी खोई है रहती प्यार के ज्यूँ चांँद के।
चांँदनी में चांँद भी खोया हुआ है इन दिनों।
कामयाबी चाहिए गर तू हुनर अपना सँवार।
हर कोई पल भर में पाना चाहता है इन दिनों।
'गीत' चल हम भी करें कुछ , जिंदगी खुशहाल हो।
हर कोई बैठा यहांँ पर क्यों बुझा है इन दिनों।
2.29pm 4 Oct 2025

4 comments:
Umda hai
बहुत सुंदर रचना के लिए बधाई
सुशील चोपड़ा
धन्यवाद जी
Thanks ji
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