बहुत मुश्किल है खुद का काँटा निकालना ।
अगर ,कोई हमसफ़र हो तो आसानी रहती है।
कट जाते हैं रास्ते एक दूजे के संग ,
और सफर की डगर भी सुहानी लगती है।
काँटो का भी फिर, दर्द नहीं होता ,
मरहम लगाने वाले जो साथ होते हैं।
सफर की डगर फिर अनजानी नहीं लगती ,
मंजिल की राह भी जैसे पहचानी पहचानी होती है।
यही तो फर्क होता है अपनों और बेगानों का ।
बेगाने बेगाने होते हैं, अपनों की बात ही कुछ और होती है।
3.55pm 2 Jan 2020 Thursday
अगर ,कोई हमसफ़र हो तो आसानी रहती है।
कट जाते हैं रास्ते एक दूजे के संग ,
और सफर की डगर भी सुहानी लगती है।
काँटो का भी फिर, दर्द नहीं होता ,
मरहम लगाने वाले जो साथ होते हैं।
सफर की डगर फिर अनजानी नहीं लगती ,
मंजिल की राह भी जैसे पहचानी पहचानी होती है।
यही तो फर्क होता है अपनों और बेगानों का ।
बेगाने बेगाने होते हैं, अपनों की बात ही कुछ और होती है।
3.55pm 2 Jan 2020 Thursday
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