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Tuesday, 14 September 2021

1769 ग़ज़ल : था वो आजाद सा परिंदा

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Qafia ओ

लिख हैं डाले पन्ने कई अब तो ।

भेज ही बस नहीं सका इनको ।


जब कभी हो दिमाग जाता है सुन्न।

दिल मुलाकात, सोचता कब हो।


है अजीबो-गरीब धड़कन ये।

जो नहीं सुनती है यहां सब को ।


था वो आजाद सा परिंदा जो।

नोंच डाला था जिसने खुद पर को।

12.13pm 13 September 2021

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