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Friday, 17 September 2021

1772 ग़ज़ल हर किसी पर ,तो फिर छतें होतीं

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जो अगर उसकी रहमतें होतीं।

जिंदगी में तो राहतें होती।


प्यार होता तुम्हे अगर मुझसे ।

आज अपनी तो कुर्बतें होतीं।


कर लिया एतबार जो होता ।

तो न तुमको यह ज़हमतें होती ।

 

होती इंसानियत जो दुनिया में ।

तो कहां फिर ये नफरतें होती ।


खेल बारुद का न अगर होता ।

आज जो हैं न हालतें होती ।


हो जो इंसानियत कहां फिर ये

एक दूजे पे तोहमतें होतीं।


काम करता जो आदमी अपना ।

फिर न ऐसी ये आदतें होतीं।


बढ़ती आबादी रोक लेते जो।

हर किसी पर ,तो फिर छतें होतीं। 

13.16pm 14 Sept 2021

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