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Monday 3 May 2021

1635 Ghazal:गज़ल: मिलके क्यों यार हैं बदल जाते

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Qafia : Aar, काफि़या :आर

Radeef : Hain badal jate,रदीफ़ : हैं बदल जाते


क्यों ये आसार हैं बदल जाते ।

मिलके क्यों यार हैं बदल जाते ।


आज कुछ और लगते हैं वो तो।

कल ये किरदार हैं बदल जाते ।


जब ये सरकार है बदलती तो ।

त्यों ही दरबार है बदल जाते ।


जिसकी लाठी है भैंस भी उसकी।

कल ये(रोज़) हकदार हैं बदल जाते ।


कितनी छोटी खबर की मुद्दत है ।

रोज अखबार हैं बदल जाते ।


कल जो नाजो़ से हमको रखते थे ।

आज बरदार (नाज़ उठाने वाले)हैं बदल जाते।


जिनको पाला था हमने नाजो़ से ।

क्यों वो परदार(जिसे पंख हों)  हैं बदल जाते।


जिनको सींचा लहू से हमने था।

बन समरदार (fruit bearing) हैं बदल जाते ।


"गीत" कुछ हैसियत न थी जिनकी।

बन असरदार हैं बदल जाते।

11.58am 3 May 2021

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