पावन पवित्र सी इस धरती पर,
यह किसने विष घोला है।
हर कहीं स्वच्छता थी ,
किसने गंदगी की तरफ मुख मोड़ा है।
थक गए सज्जन कहते कहते
धरती हमारी माता है।
पर आज के इस मानव को ,
समझ कुछ नहीं आता है।
अंधे हुए दौड़ रहे हैं सब,
एक दूसरे पर गिरते हैं।
कितना भी रोको इनको ,
पर यह तो न रुकते हैं।
कब समझेंगे यह ,
इसका कुछ पता नहीं है।
नहीं जानते हैं धरती के अलावा ,
जीवन कहीं बचा नहीं है।
खोजें खोज खोज कर ,
जो था वह भी लुटा दिया।
इस पावन स्वर्ग सी धरती को ,
न जाने क्या है बना दिया।
8.03pm 10 May 2021
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