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Monday, 10 May 2021

1642 अंधे हुए दौड़ रहे हैं सब

 पावन पवित्र सी इस धरती पर,

 यह किसने विष घोला है।

हर कहीं स्वच्छता थी ,

किसने गंदगी की तरफ मुख मोड़ा है।


थक गए सज्जन कहते कहते 

धरती हमारी माता है।

पर आज के इस मानव को ,

समझ कुछ नहीं आता है।


अंधे हुए दौड़ रहे हैं सब,

 एक दूसरे पर गिरते हैं।

कितना भी रोको इनको ,

पर यह तो न रुकते हैं।


कब समझेंगे यह ,

इसका कुछ पता नहीं है।

नहीं जानते हैं धरती के अलावा ,

 जीवन कहीं बचा नहीं है।


खोजें खोज खोज कर ,

जो था वह भी लुटा दिया।

इस पावन स्वर्ग सी धरती को ,

न जाने क्या है बना दिया।

8.03pm 10 May 2021


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