मौसम की क्या बात कहें, यह तो बदलते रहते हैं ।
आदमी भी मौसम सा हुआ है ,रंग बदलते रहते हैं।
जाने कैसे जीने का शौक है पाला,
रोज ही ढंग बदलते रहते हैं।
सोचता सिर्फ अपने बारे और कोई सोच नहीं ,
जब देखो इसके रूप रंग बदलते रहते हैं ।
गिरगिट को तो बस नाम दिया है रंग बदलती गिरगिट ,
इंसान को क्या कहें हम जिसके रूप रंग बदलते रहते हैं।
आज किसी के साथ चलेंगे कल कोई और,
इसी तरह साथ चलने वाले अंग संग बदलते रहते हैं।
आओ हम प्यार पालें और हिंसा की परिभाषा बदलें ।
यह न कह सके कोई कि इंसान के प्रसंग बदलते रहते हैं।
3.13pm 11May 2021
2 comments:
अच्छी है।
धन्यवाद
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