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क़ाफ़िया आ
रदीफ़ मज़ा आ गया
जो चाहा वही पा मज़ा आ गया।
रहा चाहे तन्हा मज़ा आ गया।
बहुत देखे मैंने मुकद्दर बड़े
ज़मीं पर रहा था मज़ा आ गया।
मिला हूँ मैं जब से तुम्हें राह में।
मुझे जिंदगी का मज़ा आ गया।
कहीं से भी गुज़रा कहीं मैं रुका।।
नहीं पर मैं बिखरा मज़ा आ गया।
कोई कुछ भी समझे कोई कुछ कहे।
मैं कुछ भी ना बोला मज़ा आ गया।
जमाने ने चाहा बिखर जाऊंँ 'गीत'।
मगर मैं तो संँवरा मज़ा आ गया।
3.45pm 24 Jan 2025
इस बहर पर फिल्मी गाना
# हवाओं पे लिख हवाओं के नाम
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