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Friday, 24 January 2025

3000 ग़ज़ल मज़ा आ गया

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क़ाफ़िया आ

रदीफ़ मज़ा आ गया 

जो चाहा वही पा मज़ा आ गया। 

रहा चाहे तन्हा मज़ा आ गया।

बहुत देखे मैंने मुकद्दर बड़े 

ज़मीं पर रहा था मज़ा आ गया।

मिला हूँ मैं जब से तुम्हें राह में। 

मुझे जिंदगी का मजा आ गया। 

कहीं से भी गुज़रा कहीं रुक गया।।

नहीं पर मैं बिखरा मजा आ गया।

कोई कुछ भी समझे कोई कुछ कहे। 

मैं कुछ भी ना बोला मज़ा आ गया।

जमाने ने चाहा बिखर जाऊंँ 'गीत'। 

मगर मैं तो संँवरा नजर आ गया।

3.45pm 24 Jan 2025

इस बहर पर फिल्मी गाने 

# बहारों ने मेरा चमन लूटकर

ख़िज़ा को ये इल्जाम क्यूँ दे दिया |

# हवाओं पे लिख हवाओं के नाम 


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