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Thursday, 6 April 2017

230 कला के रंग (Kala k Rang)

कला ने भर दिया दामन देखो ,
किसी का इजहार ए मोहब्बत से।

मोहब्बत का पैगाम भी दिया यार को,
और बच गया दामन दुनिया की तौहमत से।

अब तो ये रंग ही देते हैं ,मोहब्बत का,
 दिलदार को , मेरे दिल का पैगाम।

चाहता है दिल,
यूं ही सफ़र उमर का गुजर जाए तमाम।

दुनिया तो जान नहीं पाती है ,
रंगों की खामोश जुबान।

मगर, यह दुनिया है,
कब तक रहेगी इस मोहब्बत से अनजान।

कभी तो राज़ इसका खुल ही जाएगा।
तब रंग अपना कमाल दिखाएगा।

लोगों का तो पसंदीदा रंग है लाल।
लहू से ही बना लेते हैं वो होली का गुलाल।

मोहब्बत क्या है? यह वो नहीं जानते।
दिलों की मजबूरियों को हो नहीं पहचानते।

काश ,उनके दिल में भी मैं भर पाता ,रंग प्यार का।
अगर ऐसा होता ,
तो कितना सुंदर होता ,रंग इस संसार का।
230 27OCT 1990
Kala ne Bhar diya  dekhi,
damman Kisi Ka Izhar E Mohabbat Se.

Mohabbat Ka Paigam bhe diya Yaar Ko,
Aur bache gya Daman Duniya Ki tohmat se.

Ab toh Rang hi dete hain Dildar Ko Mere Dil ka pegam.
Chahta Hai Dil ,yun Hi Safar umar Ka Guzar Jaaye tamaam.

Duniya to Jaan nahi pati hai Rango ki Khamosh Zubaan.
Magar ye Duniya Hai, kab tak Rahegi is Mohabbat Se Anjaan.

Kabhi to raj Khul hi Jayega.
Tab  Rung apna Kamal dikhayega.

Logon Ka Tuo Pasand -Di-Da Rang he Lal.
Lahu Se Hi Bana Lete Hain Wo Holi ka Gulal.

Mohabbat Kya Hai ? Ye vo Nahi Jante.
Dilo ki Majboori Ko Nahi PehchanTe.

 Kash un Ke Dil Main Bhi main bhr pata Rang Pyar Ka.
Agar aisa hota ,
Toh kitNa sunder Hota, Rang is Sansar ka. 

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