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Monday, 12 June 2023

2409 ग़ज़ल Ghazal देख जंगल है

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Qafia al काफिया अल

Radeef hai रदीफ़ है

ऐसा लगता है सारा जंगल है ।

यह तो आंँखों का मात्र इक छल है ।


है सभी कुछ ही चाहता पाना ।

अब कहांँ आदमी को संबल है ।


अब न मौसम का है भरोसा कुछ ।

तेरी करनी का ही तो ये फल है ।

धरती बंजर है, फूल हैं गायब ।

और न अब पेड़ पर कोई फल है।

गर बचा सकता है बचा इसको।

आदमी कुछ नहीं बिना जल है ।

तेरे कारण ही प्यासी है धरती ।

आके फिर जा रहा ये बादल है ।

आज पर्यावरण प्रदूषण ने ।

सारी दुनिया को इक दी हलचल है।

 ख़्वाब का, सांँस का या सेहत का।

अपने चारों तरफ ही दलदल है।

"गीत" जो भी करें वो आज करें।

अब नहीं है तो रोज़ फिर कल है।


आज हर कोई हो रहा ब्रांडेड ।

"गीत" कुछ भी कहांँ पे लोकल है।

12.37pm 12June 2023

Har taraph phaila dekh jangal hai .

Yeh to aannkhon ka ek bas chhal hai .

Ab na mausam ka hai bharosa kuchh .

Teri karani ka hee to ye phal hai .

Hai sabhee kuchh hee chaahata paana .

Ab kahaann aadamee ko sambal hai .

Kar sanrakshan ,kahega varana too.

Kuchh batao kahaann,kahaan jal hai .

Tere kaaran hee pyaasee hai dharatee .

Aake phir ja raha ye baadal hai .

Aaj har koee ho raha braanded .

"Geet" kuchh bhee kahaann pe lokal hai.

(English meaning)

There is a forest spread everywhere.

This is just a trick of the eyes.

Now there is no trust of the weather.

This is the result of your actions only.

Everyone wants to get something.

Where is the man's strength now?

Take protection, otherwise you will say.

Tell me where, where is the water.

The earth is thirsty because of you.

This is a cloud that comes and goes again.

Today everyone is getting branded.

"Geet"nothing is local here.

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