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क़ाफ़िया आर Qafia aar
रदीफ़ देखकर Radeef Dekhkar
सोचा था तू बनेगा मेरा प्यार देखकर।
हैरान हो गया मैं तेरा वार देख कर।
था झूठ और फ़रेब दुकानों में बिक रहा।
घबरा गया था मैं वहांँ बाजार देख कर।
था झूठ सच पे भारी जहांँ मोल भाव था।
मैं चल पड़ा था सच का वहांँ भार देखकर।
चाहा सुकून मैंने, मिला शोर हर तरफ।
आया था मैं चला,वहांँ तकरार देख कर।
मैं चल दिया वहांँ से लेके टूटा दिल मेरा।
करता भी क्या वहांँ तेरा इनकार देखकर।
जब सोच मैं चुका था तुझे खो चुका हूँ मैं।
हैरान हो गया तेरा इज़हार देख कर।
मंज़िल मिलेगी सोच में चलता रहा सदा।
बच कर चला था 'गीत' वहांँ ख़ार देख कर।
3.43pm 1 Nov 2024
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