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Friday, 29 November 2024

2945 ग़ज़ल : झगड़े कब नहीं

शम्स जी की ज़मीन पर

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Qafia e' Radeef kab nahin

क़ाफ़िया ए 

रदीफ़ कब नहीं

गम प्यार में थे आए मेरे हिस्से कब नहीं।

निकले थे प्यार की जगह पे शोले कब नहीं।

जो ठान लेते पाते यहाँ मंजिले वही।

मैदां में घुड़सवार कहो गिरते कब नहीं।

दुनिया सदा से ही रही दुश्मन तो प्यार की।

ये लोग बोलो इससे यहाँ जलते कब नहीं।

तकरार और प्यार सदा चलता एक साथ।

 हो प्यार जिसको बोलो कभी झगड़े कब नहीं।

 लैला कहांँ यहांँ, कहांँ मजनूं मिलेंगे अब।

इस दौर में है टूटे कहो वादे कब नहीं।

तुम कह रहे हो प्यार का इज़हार कब किया।

इतना मुझे कहो कि (कहा, तुमसे कब नहीं)।

हर बार प्यार का किया इजहार उनसे जब।

दिल 'गीत' का दुखाया कहो उसने कब नहीं ।

5.56pm 29 Nov 2024

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