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Tuesday, 2 February 2021

1545 लाडला

 जब माँ के घर था लाडला आया ।

सारे परिवार ने था जश्न मनाया।


लाडला फिर बड़ा होने लगा।

लाडले को फिर खूब पढ़ाया।


फिर वो बड़ा अफसर बन गया ।

खूब उसने फिर नाम कमाया।


एक दिन ऐसा दिन भी आया ।

बेटे का ब्याह रचा, बहू घर में लाया।


माँ ने फिर एक बार जश्न मनाया।

आते ही बहू ने फरमान सुनाया।


मुझे सबके साथ नहीं रहना है। 

मुझको यहाँ का माहौल न भाया।


जब सब मिल खाना खाने बैठे।

लाडले ने फिर सबको बताया।


बहू चाहती है अलग रहना सबसे। 

उसके लिए मैं अलग घर देख आया।


बेटे की बात सुनते ही घर में ।

एकदम गहरा सन्नाटा छाया।


माँ को कहा, उसके रहने का इंतजाम कर दो।

जाकर राशन पानी सामान भर दो।


बहू सोच में पड़ गई जब मतलब समझा। 

एकदम जैसे उसको लग गया था झटका।


बेटा बोला तुमको अलग रहना है ।

तुमने ही था फरमान सुनाया।


तुम्हारी इच्छा का मान रखकर, 

 मैंने तुम्हारा ही सम्मान बढ़ाया।


मैं तो खुश हूं अपने घर में।

पर तुमको तो यह घर न भाया।


तुमसे मिलने आ जाऊँगा ।

जब जब में समां निकाल पाया।


तुम अपना घर छोड़कर आई हो।

हम तुम्हारा कहना टाल नहीं सकते।


तुम करो जो चाहो करना ,पर

हम भी अपने घर को छोड़ नहीं सकते।


इतना सुनते सबकी आँखें खुली रह गई।

बात आज तक ,जहाँ थी वहीं रह गई।


बहू पति के आगे नतमस्तक हो गई।

फिर हमेशा के लिए उस परिवार की हो गई।

9.48pm 2 Feb 2021


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