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Wednesday, 17 February 2021

1560 झील किनारे बैठे यूँ ही

झील किनारे बैठे यूँ ही,

आहट झरने की सुनते ज्युँ ही,

यादों में तेरी मैं जब खोया।


मन के भीतर जो लहरें उठीं,

सोच में पड़ गया  त्यूँ ही,

क्या पाया मैंने क्या खोया।


क्यों सोचता है मन इतना,

पूछना क्या है इसमें इतना, 

पाया वही है, जो है बोया।

8.30am 17 Feb 2021Wednesday