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Saturday, 20 February 2021

1563 चैन

 दर-दर मैं घूमता रहा ,

चैन न आया किसी जगह ।

जो मैं बैठा एक जगह,

 चैन आया उसी जगह ।

चैन की कोई जगह नहीं ,

चैन तो अपने भीतर ही ।

डोलता रहता मन यूँ ही ,

दशा जो जानों भीतर की ।

उसको तू ढांडस बंधा। 

मन पाएगा चैन तभी।

22.30pm 20 Feb 2021

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