Followers

Friday, 5 March 2021

1576 जल उठी जब लौ मेरे मन की

 जल उठी जब लौ मेरे मन की ।

हर तरफ उजाला हो गया ।

नए फिर तराने यह गाने लगा।

 जो कभी मेरा मन था सो गया ।


जब उजाला फैल गया ।

हर तरफ से रंग बरसने लगा ।

बेरंग थी जो महफ़िलें सब,

 माहौल उनका रंगीन हो गया।


 यह तो मन की ही बात है बस ।

तो क्यों ना मन खिला-खिला रखें ।

दूर करके सब अंधेरे मन के,

तू खिला मन, जैसे मेरा हो गया।

4.25pm 5 March 2021