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काफि़या: ईं
गैर मुरद्दफ़ गज़ल
मैंने तुझ पर किया है जो देखो यकीं।
याद रखना सनम भूल जाना नहीं।
तुमने मुझ पर किया ये जो एहसान है ।
माना तुमको सनम सारे जग से हसीं।
तेरे ही साए में रहने की चाह है ।
दर्द देकर कभी तुम यूँ जाना नहीं।
जो रहो तुम मेरी आंखों के सामने ।
कुछ न चाहेंगे हम, आसमा ये जमीं।
जो मिले हो मुझे तुम नसीबो से तो।
पाली है मैंने जन्नत यहीं हाँ यहीं।
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