धरती है हर नारी रूप धरा का
पोषण करती प्रेम प्यार से शिशु का।
कोमलांगी है पर कमजोर नहीं।
वक्त आने पर बन जाती है चामुंडा।
सब सह कर एक वही रख पाती,
प्रेम प्यार से घर को महकाती ।
किसी को कोई कष्ट न देती।
सदा हँसती और गाती रहती।
नारी एक ऐसा ध्वज है।
जो रहती सदा सजग है।
उसके अस्त्र हैं प्रेम प्यार ।
करना तुम उसका सत्कार।
8.08pm 7 March 2021
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