2122 1212 22
काफि़या :आँ
रदीफ़ :समझे
जिनको हम अपना हमज़बाँ समझे।
वो हमें कुछ भी थे कहाँ समझे ।
उनके पैरों में थी जमीं अपनी।
हम जिन्हें अपना, आसमाँ समझे।
सारी दुनिया थे वो हमारी पर ।
वो तो हमको थे, बस मकाँ समझे।
भूल की जो ये हमने सोचा था।
वो कि अपना हमे ,जहाँ समझे ।
आग जब अपने घर तलक पहुँची।
क्यों उठा फिर है ये, धुआँ समझे।
जब अकेले हुए वो राहों पर,
तब ही कदमों के, वो निशाँ समझे।
कितने चेहरे लगे हैं चेहरों पे ।
कौन अपना किसे यहाँ समझे ।
12.37pm 23 April 2021
2 comments:
आपके जज्बे में कशीश के किरदार के जज़्बात।
धन्यवाद
Post a Comment