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Friday, 23 April 2021

1625 Gazal : गजल :वो तो हमको थे ,बस मकाँ समझे

 2122 1212 22

काफि़या :आँ

रदीफ़ :समझे

जिनको हम अपना हमज़बाँ समझे।

वो हमें कुछ भी थे कहाँ समझे ।


उनके पैरों में थी जमीं अपनी।

हम जिन्हें अपना, आसमाँ समझे।


सारी दुनिया थे वो हमारी पर ।

वो तो हमको थे, बस मकाँ समझे।


भूल की जो ये हमने सोचा था।

वो कि अपना हमे ,जहाँ समझे ।


आग जब अपने घर तलक पहुँची।

 क्यों उठा फिर है ये, धुआँ समझे।


जब अकेले हुए वो राहों पर,

तब ही कदमों के, वो निशाँ समझे।


कितने चेहरे लगे हैं चेहरों पे ।

कौन अपना किसे यहाँ समझे ।

12.37pm 23 April 2021

2 comments:

Unknown said...

आपके जज्बे में कशीश के किरदार के जज़्बात।

Dr. Sangeeta Sharma Kundra "Geet" said...

धन्यवाद