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Monday 9 September 2024

2864 ग़ज़ल Ghazal हर शख्स नकारा उसने

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क़ाफ़िया आया रदीफ उसने 

Qafia aara Radeef usne

कान क्यों बंद तेरे थे जो पुकारा उसने।

वह तड़पती रही पाया न सहारा उसने।

क्यों नहीं को नहीं हम मान लिया करते हैं।

क्यों बड़ा हाथ, किया जब था इशारा उसने। 

राह चलती हुई अबला से किया तुमने जो।

क्या कभी कुछ भी बिगाड़ा था तुम्हारा उसने।

फर्क उसने न कभी ठीक गलत का जाना।

करके इक बार किया फिर से दोबारा उसने। 

क्या हुआ, कुछ भी नहीं,सब हैं खड़े चुप ऐसे।

सोचते कुछ भी बिगाड़ा न हमारा उसने।

कर दिया खत्म  किसी ने जो सजाया सपना।

मौन को घर में किसी के है पसारा उसने।

यह सिखाया ही नहीं बच्चों को अपने हमने।

मर्द की जात बड़ी ये ही विचारा उसने।

इतना लड़ के भी वह खुद को न बचा पाई थी। 

 छोड़ा था पास नहीं बचने का चारा उसने।

अपनी जागीर समझ बैठे हो हर औरत को।

'गीत' इस बात पे हर शख्स नकारा उसने।

4.34pm 6 September 2024

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