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क़ाफ़िया आ
रदीफ़ रही है
यह कैसी उधर से हवा आ रही है।
हवा में जो फूलों को बिखरा रही है।
कोई बात उसमें तो है कुछ तो ऐसी।
मेरे दिल का गुलशन जो महका रही है।
बहारों का जो रास्ता देखता था।
यह लगता घटा बन के वो आ रही है।
कली फूल बन कर के खिल जाएगी जब।
ये मौसम गजब प्यार का ला रही है।
सभी भंवरे अब भिनभिनांएंगे आकर।
हवा सबको संदेश ले जा रही है।
ये दुनिया जो चलती है बस प्रेम से वो।
यही प्रेम दुनिया पे बरसा रही है।
नहीं 'गीत' दुनिया ये बिन प्रेम चलती।
हर इक को तभी प्रेम सिखला रही है।
4.55pm 19 Dec 2024
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