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Tuesday, 24 December 2024

2969 ग़ज़ल : तुझको क्यों बुरा लगता।

 Punjabi version 2971

English version 2970

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क़ाफ़िया आ

रदीफ़ मेरा तुझको क्यों बुरा लगता।

किसी से बात करना मेरा तुझको क्यों बुरा लगता।

किसी से दिल लगाना मेरा तुझको क्यों बुरा लगता।

बहुत मौके दिये मैंने तो तुझको बात करने के।

किसी पे अब यूँ मरना मेरा तुझको क्यों बुरा लगता।

समझ जाते जो दिल की बात तुम कहने से पहले ही।

तो फिर ये दूर जाना मेरा तुझको क्यों बुरा लगता।

सदा तुमने करी कोशिश थी जिद अपनी मनाने की। 

किसी को अब मनाना मेरा तुझको क्यों बुरा लगता। 

हैं पाई मंजिले मैंने कभी सोची थी पाने की।

उन्हीं को आज छूना मेरा तुझको क्यों बुरा लगता। 

तू करता वो ही जो है सोचता खुद से, वही सब क्यों। 

है अपने दम से पाना मेरा तुझको क्यों बुरा लगता।

न गम में साथ तुमने था दिया मेरा कभी पहले।

खुशी के 'गीत' गाना मेरा तुझको क्यों बुरा लगता।

5.37pm 24 Dec 2024

1 comment:

Anonymous said...

Very Nice